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कलाम
जो हैं नव-वारिदान-ए-सहन-ए-गुलशन उन को दा'वत देन छेड़ ऐ फ़स्ल-ए-गुल दीवाना-ए-सर-दर-गरेबां को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
हस्ती के हम चमन में हैं चश्म-ए-मिस्ल-ए-नर्गिस'दाग़'-ए-फ़िराक़-ए-मह-वश क्या गुल खिला रहा है
दाग़ देहलवी
कलाम
स्वामी निरमल
कलाम
ग़म हूँ रह-ए-तलब में ब-क़द्र-ए-कमाल-ए-ज़ौक़मुझ को दिमाग़-ए-साहिल-ओ-मंज़िल नहीं रहा
सीमाब अकबराबादी
कलाम
निगाहों में समाएँ क्या करिश्मे हुस्न-ए-फ़ितरत केतिरा जल्वा है वाफ़िर तंग-दामान-ए-नज़र अपना
बर्क़ देहलवी
कलाम
अब जहाँ में कुछ नहीं है आरज़ू 'उल्वी' मुझेमरते दम हो सूरत-ए-मीरज़ा नज़र के सामने
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
कभी तार-ए-क़फ़स कटता नहीं शहबा-ए-हिज्राँ मेंनए जौहर हैं ऐ क़ातिल मिरी तेग़-ए-गरेबाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
किस दर्जा रब्त रखते हैं ज़ख़्म-ए-जिगर से आपया हू निकाल लाते हैं गर चश्म-ए-तर से आप